बिहार की राजव्यवस्था
बिहार भारतीय संघ का एक राज्य है। राज्य के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए संघ सरकार के सदृश बिहार में भी प्रतिनिधिमूलक संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है।
बिहार विधानसभा
बिहार विधानसभा का गठन संविधान के उपबंधों के अनुसार किया गया है। वर्तमान में बिहार विधान सदस्यों की कुल संख्या 243है। विधानसभा में सभी को प्रतिनिधित्व देने की दृष्टि से एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक प्रतिनिधि को राज्यपाल द्वारा विधानसभा का सदस्य मनोनीत किया जाता है। विधानसभा को राज्य के लिए कानून बनाने, बजट पारित करने,
कार्यपालिका पर अंकुश लगाने संबंधी व्यापक शक्तियों संविधान द्वारा प्रदान की गई हैं। विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक पार्टी द्वारा ही राज्य में सरकार का गठन किया जाता है। बिहार विधानसभा में एक अध्यक्ष(स्पीकर) और एक उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर ) होता है इनका चुनाव सदन के सदस्यों में से सदन द्वारा किया जाता है।
बिहार विधानपरिषद
संविधान की धारा 168 और 171 के अंतगर्त गठित बिहार विधानपरिषद में 75 सदस्य हैं।
यह राज्य विधानमंडल का उच्च सदन है।
विधानपरिषद एक स्थायी सदन है और इसका विघटन नहीं होता है। किन्तु इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष अवकाश ग्रहण कर लेते हैं। बिहार विधानपरिषद में एक सभापति और एक उपसभापति का पद है।
कार्यपालिका
राज्य की कार्यपालिका केंद्र की कार्यपालिका की तरह ही कार्य करती है तथा इसका प्रभाव राज्यपाल होता है।
राज्य की राजधानी - पटना से ही राज्य की कार्यपालिका राज्य का संचालन करती है।
राज्य की कार्यपालिका के राजनीतिक प्रमुख मुख्यमंत्री होते हैं। वे तथा उनकी मुख्यमंत्री संयुक्त रूप से राज्य विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इनके सहायतार्थ विशेष सचिव, उप-सचिव, अन्य उच्चधिकारी तथा कर्मचारी होते हैं।
सचिवालय
राज्य के सचिवालय के प्रायः सभी विभागों में उनके प्रधान सचिवों के नियंत्रणाधीन विभागाध्यक्ष अथवा कार्यालयाध्यक्ष होते हैं। शासन की कार्यपालिका शक्ति के रूप में कार्य करते हुए समस्त आदेश या समस्त कार्य मुख्यतः हिंदी भाषा एवं देवनागरी लिपि में सपन्न होता है
और शासनादेशों पर सचिव अथवा उनके द्वारा अधिकार प्राप्त अनुसचिव पद तक के अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं। सचिवालय के प्रधान सचिव, विशेष सचिव, संयुक्त सचिव, उप सचिव आदि पदों पर सामान्यतः भारतीय तथा बिहार प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं।
राज्यपाल
राज्य का समस्त शासन-कार्य राज्य पाल के नाम पर चलता है।
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है जो प्रायः पांच साल के लिए नियुक्त किये जाते हैं परन्तु राष्ट्रपति उन्हें बीच में हटा भी सकता है।
ऐसे नागरिक ही राज्यपाल नियुक्ति किये जा सकते है, जिनकी उम्र कम-से-कम ३५ वर्ष हो।
राज्यपाल में राज्य की कार्यपालिका संबंधी शक्तियां निहित होती है, जिनका उपयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ मंत्रियों के द्वारा करता है।
मंत्रिपरिषद
राज्यपाल को प्रशासन में सहायता एवं सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती है, जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है। सैद्धांतिक दृष्टि से मंत्रिपरिषद एक परमर्शदात्रि समिति है, किन्तु व्यवहार में यह राज्य की वास्तविक कार्यपालिका है,
जिसके परामर्श के अनुसार राज्यपाल कार्य करने को बाध्य होता है। विधि, वित्तीय व अर्थ संबंधी सभी मामलों का निर्धारण मंत्रिपरिषद ही करती है।
मुख्यमंत्री
विधानसभा के सदस्य कई राजनीतिक दलों में बंटे होते हैं, जिस दल का बहुमत होता है उसी दल का नेता मुख्यमंत्री होता है। यदि किसी दल का बहुमत नहीं हुआ तो कई दलों के पारस्परिक तालमेल से गठबंधन सरकार या मंत्रिपरिषद का गठन किया जाता है।
मंत्रिपरिषद में प्रधानता मुख्यमंत्री की होती है। मुख्यमंत्री का चुनाव उसके दल अथवा गठबंधन के सहयोगी दलों के सदस्य करते हैं।
किन्तु मख्यमंत्री के रूप में किसी व्यक्ति की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा होती है। मुख्यमंत्री राज्यपाल व मंत्रिमंडल के बीच कड़ी का कार्य करता है।
शासन संबंधी निर्णयों, मंत्रियों व पदाधिकारियों की नियुक्ति तथा विधि निर्माण कार्य में मुख्यमंत्री की भूमिका अहम होती है।
न्यायपालिका
न्यायपालिका सरकार का तीसरा प्रमुख अंग होता है। नागरिक जीवन में शासन, अनुचित हस्तक्षेप न करे और एक नागरिक दूसरे नागरिक के साथ ठीक व्यवहार करे,
इसकी देखभाल के लिए भारतीय संविधान के उपबंधों के अधीन बिहार में भी स्वतंर न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है।
राज्य में सबसे ऊँची अदालत पटना उच्च न्यायालय है, जिसकी स्थापना सन 1916 ई. में हुई थी। छोटी अदालतों के अधिकारी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त होते हैं।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में अवकाश ग्रहण करते है।
उच्च न्यायालय
देश के विभिन्न राज्यों में न्याय प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए उच्च न्यायालयों का गठन किया गया है।
उच्च न्यायालय राज्य का शीर्ष न्यायालय होता है, जो राज्य के मौलिक अधिकारों का संरक्षक होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए मौलिक अधिकारों का संरक्षक होता है। वर्तमान में सम्पूर्ण भारत वर्ष में 24 उच्च न्यायालय है।